Bihar में नीतीश सरकार द्वारा लागू की गई शराबबंदी को लेकर पटना हाईकोर्ट ने एक बार फिर सवाल खड़े किए हैं। हाईकोर्ट के जस्टिस पूर्णेदु सिंह ने एक मामले की सुनवाई के दौरान सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि शराबबंदी से राज्य में अवैध शराब का कारोबार बढ़ा है। उन्होंने कहा कि शराबबंदी का कानून अब पुलिस और तस्करों की मिलीभगत से कमाई का जरिया बन गया है, और इसका सबसे ज्यादा खामियाजा गरीब जनता को भुगतना पड़ रहा है।
Bihar : शराबबंदी पर कोर्ट की तल्ख टिप्पणी
जस्टिस पूर्णेदु सिंह ने कहा कि शराबबंदी कानून का उद्देश्य लोगों के जीवन को सुधारना था, लेकिन अब यह कानून राज्य के गरीबों के लिए मुसीबत बन गया है। उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस, आबकारी और परिवहन विभाग जैसे अधिकारी इस कानून से फायदा उठा रहे हैं। उनकी नजर में यह कानून पुलिस के लिए एक ऐसा हथियार बन गया है, जिसका उपयोग वे तस्करों के साथ मिलीभगत करके मोटी कमाई के लिए कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने शराबबंदी को इसलिए लागू किया था ताकि जनता के जीवन स्तर में सुधार हो और स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़े। लेकिन समय के साथ यह कानून अपनी मूल भावना से भटक गया और इसे अब इतिहास में गलत फैसले के रूप में देखा जा सकता है।
Bihar : पुलिस अधिकारी का मामला और कोर्ट का फैसला
यह मामला साल 2020 का है, जब पटना के बाईपास थाने में तैनात एसआई मुकेश पासवान को उनके इलाके में विदेशी शराब पकड़े जाने के बाद डिमोट कर दिया गया था। राज्य सरकार के आदेश के अनुसार, जिस पुलिस अधिकारी के इलाके में शराब पकड़ी जाएगी, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। मुकेश पासवान ने इस फैसले को गलत बताते हुए पटना हाईकोर्ट का रुख किया।
हाईकोर्ट ने 29 अक्टूबर को सुनवाई करते हुए एसआई मुकेश पासवान को राहत दी और उनके डिमोशन के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मुकेश पासवान को उनके इलाके में शराब के बारे में जानकारी न होने के बावजूद सजा देना अनुचित है।
Bihar : शराबबंदी के दुष्प्रभाव
पटना हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य में शराबबंदी से अवैध शराब का कारोबार तेजी से बढ़ा है। तस्करों और पुलिस के बीच मिलीभगत के कारण यह कानून अपने उद्देश्य से भटक गया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि शराबबंदी गरीबों के लिए ज्यादा नुकसानदेह साबित हो रही है, क्योंकि उन्हें पुलिस की ज्यादतियों का शिकार होना पड़ता है।
Bihar : कानून की मूल भावना और वर्तमान स्थिति
हाईकोर्ट ने माना कि 2016 में लागू किए गए इस कानून का उद्देश्य सही था। राज्य सरकार की मंशा थी कि इससे लोगों का जीवन बेहतर होगा और स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। लेकिन जिस तरह से इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है, उससे इसके उद्देश्य विफल होते नजर आ रहे हैं।
पटना हाईकोर्ट की यह टिप्पणी बिहार सरकार के लिए एक चेतावनी है कि शराबबंदी कानून को पुनः जांचने और उसमें जरूरी सुधार करने की आवश्यकता है। यह समय है कि सरकार इस कानून को सही दिशा में ले जाने के लिए ठोस कदम उठाए, ताकि इसका फायदा सही मायनों में जनता को मिल सके।
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