Kanpur और शुक्लागंज को जोड़ने वाला 150 साल पुराना गंगा पुल मंगलवार सुबह ढह गया। अंग्रेजों के जमाने में बनाया गया यह पुल ऐतिहासिक महत्व रखता था और आजादी की लड़ाई का गवाह भी रहा है। पुल का लगभग 80 फीट लंबा हिस्सा टूटकर गंगा नदी में समा गया। हालांकि, यह पुल चार साल पहले ही जर्जर हालत के चलते यातायात के लिए बंद कर दिया गया था।
1875 में इस पुल का निर्माण अंग्रेजों ने कानपुर को उन्नाव और लखनऊ से जोड़ने के लिए कराया था। इसे बनाने में सात साल और चार महीने का समय लगा। पुल की चौड़ाई 12 मीटर और लंबाई 1.38 किलोमीटर थी। इसके ऊपर वाहन चलते थे, जबकि नीचे पैदल यात्रियों और साइकिल सवारों के लिए रास्ता था। पुल पर रोजाना करीब 1.25 लाख लोग सफर करते थे।
Kanpur : आजादी की लड़ाई का गवाह
यह पुल न केवल यातायात के लिए महत्वपूर्ण था, बल्कि इसका ऐतिहासिक महत्व भी है। आजादी की लड़ाई के दौरान जब क्रांतिकारी गंगा नदी पार कर रहे थे, तब अंग्रेजों ने इसी पुल से उन पर गोलियां चलाई थीं। यह पुल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के कई महत्वपूर्ण क्षणों का गवाह रहा है।
Kanpur : पुल की जर्जर स्थिति
Kanpur प्रशासन ने 2019 में इस पुल को जर्जर मानते हुए यातायात के लिए बंद कर दिया था। IIT Kanpur की जांच में इसे खतरनाक घोषित किया गया था। पुल में दरारें बढ़ने के कारण इसे पूरी तरह बंद कर दिया गया था। बावजूद इसके, इसे संरक्षित धरोहर के रूप में बनाए रखने के लिए नगर निगम ने इसके रखरखाव और सौंदर्यीकरण पर करोड़ों रुपये खर्च किए थे।
पुल के बंद होने से उन्नाव के शुक्लागंज में रहने वाली 10 लाख की आबादी को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। स्थानीय जनप्रतिनिधियों और मंत्रियों ने इसे फिर से चालू कराने की कोशिश की, लेकिन प्रशासन ने इसे असुरक्षित घोषित कर दिया।
Kanpur : गिरने की चेतावनी पहले से थी
मंगलवार सुबह पुल का एक हिस्सा टूटकर गिरने की घटना ने प्रशासन की चिंताओं को सही साबित कर दिया। यह पुल लोहे और सीमेंट का बना था। पुलिस ने घटना के बाद पुल के आसपास सुरक्षा के इंतजाम कड़े कर दिए हैं और लोगों की आवाजाही पूरी तरह बंद कर दी गई है।
इतिहास की झलक
गंगा पुल का निर्माण ईस्ट इंडिया कंपनी के इंजीनियरों ने कराया था। 1875 में यातायात के लिए इसे खोला गया। इसके बाद 1910 में इसके पास ही एक रेलवे पुल का निर्माण किया गया। यह पुल कानपुर से लखनऊ जाने वालों के लिए लंबे समय तक एकमात्र साधन था।
समाज और प्रशासन के लिए सबक
इतिहास के इस पुल का गिरना न केवल प्रशासनिक लापरवाही का उदाहरण है, बल्कि यह भी दिखाता है कि हमारी धरोहरों को संरक्षित रखने की कितनी जरूरत है। 150 साल पुराना यह पुल कानपुर और उन्नाव के लोगों के लिए केवल एक यातायात का साधन नहीं, बल्कि इतिहास और संस्कृति का प्रतीक भी था।
अब इस घटना के बाद प्रशासन के सामने एक नई चुनौती है कि ऐसे ऐतिहासिक स्थलों को सुरक्षित रखने के लिए उचित कदम उठाए जाएं, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके।
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