प्रियंका गांधी ने Wayanad से अपनी राजनीति की शुरुआत की थी और उनकी लोकप्रियता ने कांग्रेस समर्थकों में एक नई उम्मीद जगाई थी। लेकिन इस बार के चुनावों में उनकी उपस्थिति के बावजूद मतदान का प्रतिशत कम रहना कई सवाल खड़े करता है।
Wayanad : मुद्दों पर फोकस और चुनावी वादे
प्रियंका गांधी ने चुनावी रैलियों में महंगाई, बेरोजगारी, और विकास कार्यों पर ध्यान दिया, वायनाड के स्थानीय मुद्दों को उठाया और कांग्रेस की ओर से विकास के वादे किए। इसके बावजूद, जनता ने इस बार के चुनाव में कम रुचि दिखाई, जिससे स्पष्ट है कि केवल बड़े वादों से जनता को जोड़ पाना चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है।
Wayanad : कम मतदान के कारण
इस बार वायनाड में 50% से भी कम मतदान दर्ज किया गया, जो कि चुनावी इतिहास में सबसे कम है। स्थानीय जानकारों का मानना है कि उदासीनता, राजनीतिक पार्टियों के प्रति अविश्वास और जमीनी स्तर पर प्रचार की कमी इस गिरावट के प्रमुख कारण रहे हैं।
Wayanad : विपक्षी दलों का कांग्रेस पर निशाना
भाजपा और एलडीएफ ने प्रियंका गांधी की रैलियों को “दिखावे” के रूप में करार दिया और कहा कि कांग्रेस पार्टी अपनी जमीनी पकड़ खो रही है। विपक्षी दलों ने इसे कांग्रेस की नीतियों और जनता से दूर होते जुड़ाव का परिणाम बताया है।
Wayanad : कांग्रेस की समीक्षा और भविष्य की रणनीति
कम मतदान ने कांग्रेस को अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए विवश कर दिया है। कांग्रेस नेतृत्व इस पर समीक्षा बैठक करेगा ताकि जनता की उदासीनता के कारणों को समझा जा सके और पार्टी की जमीनी पकड़ को मजबूत किया जा सके।
वायनाड में कम मतदान का आंकड़ा यह दर्शाता है कि जनता अब ऐसे नेताओं और पार्टियों की तलाश में है जो उनके मुद्दों को गंभीरता से लें। प्रियंका गांधी जैसे नेताओं की रैलियाँ और चुनावी अभियान इस कमी को पूरी तरह दूर करने में असफल रहे हैं, और यह कांग्रेस के लिए अपनी रणनीतियों में बदलाव का संकेत देता है।
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