Jharkhand विधानसभा चुनाव 2024 में इंडिया ब्लॉक को बड़ी जीत हासिल हुई। झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की अगुवाई वाले गठबंधन ने 81 सीटों वाली विधानसभा में 56 सीटें जीतकर बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया। लेकिन कांग्रेस, जो गठबंधन की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है, सरकार में अपनी स्थिति को लेकर संघर्ष कर रही है।
Jharkhand चुनाव का नतीजा और कांग्रेस की स्थिति
जेएमएम ने 34 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस के खाते में 16 सीटें आईं। हालांकि, गठबंधन ने बहुमत के लिए जरूरी 41 का आंकड़ा आसानी से पार कर लिया, लेकिन कांग्रेस को सरकार में अपनी भूमिका के लिए मोलभाव करना पड़ रहा है। पार्टी ने डिप्टी सीएम पद की मांग की थी, जिसे जेएमएम ने ठुकरा दिया। अब कांग्रेस चार मंत्री पदों के लिए बातचीत कर रही है, लेकिन जेएमएम के रुख को देखते हुए इसे भी हासिल करना कठिन लग रहा है।
“जम्मू-कश्मीर” जैसा हाल क्यों?
कांग्रेस की Jharkhand में स्थिति की तुलना जम्मू-कश्मीर से की जा रही है, जहां हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के बाद भी कांग्रेस को सत्ता में कोई खास भागीदारी नहीं मिली।
जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 42 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सरकार बनाई। कांग्रेस के केवल 6 विधायक जीत सके, जो गठबंधन के लिए निर्णायक तो नहीं थे। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अन्य निर्दलीय और छोटे दलों के साथ गठजोड़ कर 48 का बहुमत पूरा कर लिया। इसके चलते कांग्रेस की “बार्गेनिंग पावर” कमजोर हो गई और पार्टी को सरकार में शामिल हुए बिना बाहर से समर्थन देना पड़ा।
Jharkhand में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। जेएमएम के पास खुद 34 विधायक हैं, और आरजेडी (4 सीटें), सीपीआई (एमएल) (2 सीटें), और निर्दलीयों के समर्थन से बहुमत के करीब पहुंचा जा सकता है। ऐसे में जेएमएम के लिए कांग्रेस की 16 सीटों पर निर्भरता सीमित हो जाती है।
कांग्रेस की “बार्गेनिंग पावर” क्यों कमजोर हो रही है?
1. सीटों की संख्या में कमी:
कांग्रेस गठबंधन में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन 16 सीटों के साथ वह इतनी मजबूत नहीं है कि जेएमएम पर दबाव बना सके।
2. जेएमएम की स्वायत्तता:
झारखंड मुक्ति मोर्चा, जो गठबंधन का नेतृत्व कर रही है, राज्य में अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखना चाहती है। पार्टी कांग्रेस को डिप्टी सीएम जैसे महत्वपूर्ण पद देने के लिए तैयार नहीं है।
3. अन्य विकल्प उपलब्ध:
जेएमएम के पास अन्य छोटे दलों और निर्दलीयों का समर्थन लेकर सरकार चलाने का विकल्प है। इससे कांग्रेस की “मोलभाव” करने की स्थिति कमजोर हो जाती है।
Jharkhand में कांग्रेस के लिए क्या रास्ता?
कांग्रेस के पास अब दो ही विकल्प हैं:
1. सरकार में शामिल होकर संतोषजनक समझौता करना:
अगर कांग्रेस चार मंत्री पदों पर सहमत होती है, तो वह सरकार का हिस्सा बन सकती है।
2. बाहर से समर्थन देना:
जैसा कि जम्मू-कश्मीर में हुआ, कांग्रेस झारखंड में भी बाहर से समर्थन देकर गठबंधन का हिस्सा बनी रह सकती है।
क्या यह कांग्रेस के लिए खतरे का संकेत है?
Jharkhand और जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस की कमजोर स्थिति दिखाती है कि पार्टी क्षेत्रीय गठबंधन में अपनी भूमिका तय करने में असमर्थ हो रही है। इंडिया ब्लॉक जैसे बड़े गठबंधन में कांग्रेस को अपनी जगह मजबूत करने के लिए नेतृत्व और रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा।
Jharkhand चुनाव में कांग्रेस ने भले ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो, लेकिन गठबंधन के भीतर उसकी स्थिति कमजोर हो रही है। जेएमएम की ताकत और कांग्रेस की बार्गेनिंग पावर की कमी के चलते पार्टी को झारखंड में अपनी भूमिका पर समझौता करना पड़ सकता है। यह कांग्रेस के लिए आत्मनिरीक्षण का समय है कि वह गठबंधन में अपनी स्थिति कैसे मजबूत करे और क्षेत्रीय राजनीति में प्रभावी भूमिका निभाए।
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