Anshuman Singh

Dear India Tv/Hindi News : कीर्ति चक्र से सम्मानित शहीद कैप्टन Anshuman Singh के माता-पिता ने परिजनों को आर्थिक सहायता देने के लिए भारतीय सेना के एनओके (नेक्स्ट ऑफ किन) में बदलाव की मांग की है। कैप्टन अंशुमान सिंह पिछले साल जुलाई में सियाचिन में साथी सैनिकों को आग से बचाते हुए शहीद हो गए थे।

Anshuman Singh के पिता रवि प्रताप सिंह और मां मंजू सिंह ने एक न्यूज चैनल से बात करते हुए दावा किया कि उनकी बहू स्मृति सिंह अब उनके साथ नहीं रहती हैं। माता-पिता ने कि मेरा बेटा शहीद हो गया लेकिन बहू सब कुछ अपने साथ ले गई।बेटे के शहीद होने के कुछ दिन बाद ही बहू उससे संबंधति सारी चीजें लेके अपने साथ चली गई है। उसने अंशुमान के एटीएम को भी ब्लॉक कारा दिया है जो अंशुमान की माँ उसे करती है।

उन्होंने कहा कि बेटे(Anshuman Singh)  की मौत के बाद उन्हें मिलने वाली ज्यादातर सुविधाएं बहू को ही मिल रही हैं। कैप्टन anshuman singh पिछले साल 19 जुलाई को सियाचिन में अपने साथियों को बचाते हुए शहीद हो गए थे। उन्हें पांच जुलाई को राष्ट्रपति ने मरणोपरांत भारत के दूसरे सबसे बड़े शांतिकालीन वीरता पुरस्कार कीर्ति चक्र से सम्मानित किया।लेकिन अंशुमान के पिता का कहना है की उन्होंने उससे छुआ तक नहीं है वो लेके चली गए।

मैंने बड़े शान के साथ शादी किया और बधाई के पात्र है उनके माता-पिता भी उन्होंने बड़े सम्मान के साथ हमारे बारात का स्वागत किया। थापर में हम 10 फरवरी को शादी किए थे हम दो दिन वहां होटल रुके में थे और शादी बड़े धूमधाम से किए. कुछ भी ऐसा नहीं चल रहा था और मैंने अपने बेटे के शादी में एक चम्मच भी नहीं लिया और बड़ी खुश थे हमारा दोनों परिवार बड़ा आनंद से जीवन चल रहा था जो बीच में जितना पांच महीना था

शहीद कैप्टन Anshuman Singh के माता-पिता ने मीडिया से बात करते हुए अपनी बहू स्मृति( Anshuman Singh) पर गंभीर आरोप लगाए हैं….

शहीद Anshuman Singh के पिता रवि प्रताप सिंह ने मीडिया से कहा, “NOK के लिए जो मापदंड तय किए गए हैं, वो सही नहीं हैं। इस बारे में मैंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भी बात की है। अंशुमान की पत्नी स्मृति अब हमारे साथ नहीं रहती, शादी को सिर्फ़ पाँच महीने हुए थे और कोई बच्चा भी नहीं है। हमारे पास सिर्फ़ दीवार पर बेटे की एक फोटो टंगी है, जिस पर माला है।”

उन्होंने आगे कहा कि इसलिए हम चाहते हैं कि NOK की परिभाषा तय हो। ये तय हो कि अगर शहीद की पत्नी परिवार में रहती है, तो किस पर कितनी निर्भरता है। वहीं, मां मंजू सिंह ने भी कहा कि वे चाहती हैं कि सरकार NOK नियमों में संशोधन करे, ताकि दूसरे अभिभावकों को परेशानी न उठानी पड़े। माता-पिता ने दावा किया कि उनकी बहू अब उन्हें छोड़कर अपने मायके चली गई है। इतना ही नहीं, बहू ने अपना पता भी बदल लिया है। पिता ने बताया कि भले ही उनकी पत्नी (शहीद अंशुमान की मां) कीर्ति चक ले रही हों

क्या है NOK का नियम?

सेना के नियमों के अनुसार, अगर किसी सेवारत कर्मी को कुछ हो जाता है, तो अनुग्रह राशि उसके निकटतम परिजन (NOK) को दी जाती है। जब कोई व्यक्ति सेना में भर्ती होता है, तो उसके माता-पिता या अभिभावकों का नाम NOK के रूप में दर्ज होता है। जब उस कैडेट या अधिकारी की शादी होती है, तो सेना के नियमों के तहत, सैनिक के जीवनसाथी का नाम उसके माता-पिता के बजाय उसके निकटतम परिजन के रूप में दर्ज होता है। सरल भाषा में कहें तो यह बैंक में नॉमिनी की तरह होता है। अब इस नियम में बदलाव की मांग हो रही ह

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