जन सुराज पार्टी के नेता और चुनावी रणनीतिकार Prashant Kishore ने बीपीएससी मामले में गिरफ्तारी के बाद बेल बॉन्ड भरने से इनकार कर दिया और जेल जाने का फैसला लिया। इसके साथ ही उन्होंने यह भी घोषणा की कि वह जेल में भी अपना अनशन जारी रखेंगे। उनकी गिरफ्तारी बिहार में एक प्रमुख राजनीतिक घटनाक्रम बन गई है, जिसमें उन्होंने न्यायिक प्रक्रिया और भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने की बात कही है।
बीपीएससी मामले में गिरफ्तारी और बेल का इनकार
Prashant Kishore को बीपीएससी (बिहार लोक सेवा आयोग) में कथित अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उनकी गिरफ्तारी के बाद उन्हें बेल का प्रस्ताव दिया गया, लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया। उनका कहना था कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेंगे, चाहे उन्हें इसके लिए जेल क्यों न जाना पड़े। उनका यह कदम बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ को दर्शाता है, जहां उन्होंने खुद को सत्तारूढ़ पार्टी और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ एक मजबूत प्रतिरोध के रूप में प्रस्तुत किया।
जेल में अनशन जारी रखने का ऐलान
Prashant Kishore ने घोषणा की कि वह जेल में भी अनशन जारी रखेंगे। उनका यह कदम इस बात का प्रतीक है कि वह अपनी राजनीतिक और सामाजिक लड़ाई में पीछे नहीं हटेंगे। अनशन का उद्देश्य सरकार और प्रशासन को भ्रष्टाचार के खिलाफ जन जागरूकता बढ़ाने के लिए मजबूर करना है। उन्होंने कहा कि जब तक बीपीएससी में भ्रष्टाचार की सच्चाई सामने नहीं आती और जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती, तब तक वह अपनी यह लड़ाई जारी रखेंगे।
Prashant Kishore के इस कदम को उनके समर्थकों और आलोचकों द्वारा अलग-अलग तरीके से देखा जा रहा है। एक ओर जहां उनके समर्थक इसे साहसिक और संघर्षशील कदम मान रहे हैं, वहीं आलोचक इसे राजनीति का हिस्सा मानते हुए उनकी मंशा पर सवाल उठा रहे हैं।
राजनीतिक संदेश और भविष्य की रणनीतियाँ
Prashant Kishore ने अपनी गिरफ्तारी और अनशन के माध्यम से एक बड़ा राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है। उनका कहना है कि यह कदम केवल उनके व्यक्तिगत संघर्ष का नहीं, बल्कि बिहार और देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जन आंदोलन का हिस्सा है। इस घटनाक्रम से यह भी स्पष्ट होता है कि प्रचंड राजनीतिक अनुभव रखने वाले किशोर भविष्य में इस मामले को और अधिक राजनीतिक तरीके से भुना सकते हैं। उनके समर्थकों के बीच इस घटना ने उन्हें एक मजबूत नेता के रूप में और अधिक स्थापित किया है, जो किसी भी कीमत पर अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करता।
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