Uddhav Thackeray

Uddhav Thackeray ने शिवसेना की राजनीति को नए रूप में ढालने की कोशिश की, लेकिन कट्टर हिंदुत्व छोड़कर उदारवादी राजनीति अपनाना उनके लिए चुनौतीपूर्ण साबित हुआ। बीजेपी से गठबंधन टूटने और कांग्रेसएनसीपी के साथ जाने के बाद उनकी राजनीतिक स्थिति लगातार कमजोर होती गई।

बीजेपी और कट्टर हिंदुत्व का दबाव

Uddhav Thackeray के नेतृत्व में शिवसेना की आक्रामक हिंदुत्व छवि पहले ही कमजोर हो चुकी थी। बीजेपी और राज ठाकरे ने इसे अपने पक्ष में भुनाया। बीजेपी ने उद्धव ठाकरे के हिंदुत्व को लेकर सवाल उठाए, जबकि एकनाथ शिंदे ने बगावत करके उनकी पार्टी को विभाजित कर दिया।

राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) भी बाल ठाकरे की पुरानी आक्रामक हिंदुत्व छवि को अपनाकर शिवसेना के परंपरागत वोट बैंक को आकर्षित करने की कोशिश में लगी हुई है।

समाजवादी पार्टी का विरोध और नई चुनौतियां

बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर शिवसेनायूबीटी के एमएलसी मिलिंद नार्वेकर की पोस्ट ने महाविकास आघाड़ी (MVA) में दरार पैदा कर दी। समाजवादी पार्टी के नेता अबू आजमी ने इसे बीजेपी की नकल बताया और MVA से अलग होने का ऐलान कर दिया।

अबू आजमी ने सवाल उठाया कि अगर MVA के नेता भी बीजेपी जैसी भाषा बोलते हैं, तो उनके साथ बने रहने का कोई तर्क नहीं है। यह विरोध न केवल गठबंधन के भीतर दरार को उजागर करता है, बल्कि उद्धव ठाकरे की राजनीतिक दिशा पर भी सवाल खड़े करता है।

हिंदुत्व की राजनीति में वापसी उद्धव ठाकरे के लिए आसान नहीं है।

1. बीजेपी का प्रभुत्व: महाराष्ट्र में हिंदुत्व की राजनीति पर बीजेपी और एकनाथ शिंदे का मजबूत नियंत्रण है।
2. शिवसेना की बदली छवि: शिवसेनायूबीटी ने हारून खान जैसे मुस्लिम विधायक को टिकट देकर उदारवादी छवि बनाई, जो कट्टर हिंदुत्व समर्थकों को नाराज कर सकती है।
3. आदित्य ठाकरे की भूमिका: आदित्य ठाकरे की राजनीतिक शैली अपेक्षाकृत कम आक्रामक है, जो पार्टी की मौजूदा स्थिति में एक बड़ा अंतर पैदा करती है।
4. स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं: उद्धव ठाकरे की स्वास्थ्य समस्याएं उनकी सक्रियता को प्रभावित कर सकती हैं।

आक्रामकता की नई जरूरत

यदि उद्धव ठाकरे हिंदुत्व में वापसी करना चाहते हैं, तो उन्हें बाल ठाकरे जैसी आक्रामक रणनीति अपनानी होगी , कट्टर हिंदुत्व के एजेंडे को अपनाना होगा ,शिवसैनिकों को फिर से संगठित करने और एकनाथ शिंदे से ऊपर अपनी छवि स्थापित करने की जरूरत होगी , बीएमसी चुनाव उनके लिए एक मौका हो सकता है, लेकिन इसमें सफलता उनकी रणनीति की स्पष्टता और प्रभावशीलता पर निर्भर करेगी।

क्या उद्धव ठाकरे करेंगे “कट्टर हिंदुत्व” की राजनीति ?

Uddhav Thackeray के पास अब समय सीमित है। हिंदुत्व की राजनीति में वापसी केवल सतही कदमों से संभव नहीं होगी। उन्हें न केवल अपने समर्थकों को फिर से जोड़ने की जरूरत है, बल्कि शिंदे और बीजेपी की पकड़ को चुनौती देने के लिए आक्रामकता दिखानी होगी।

Uddhav Thackeray के लिए “घर वापसी” का रास्ता आसान नहीं है। उनकी वर्तमान स्थिति को देखते हुए, कट्टर हिंदुत्व अपनाना और बाल ठाकरे की आक्रामक शैली अपनाना ही उन्हें राजनीतिक अस्तित्व बचाने का एकमात्र रास्ता दिखता है।

यह भी पढ़ें: बांग्लादेश मुद्दे पर Mamata Banerjee का बयान : ‘आप कब्जा करेंगे और हम लॉलीपॉप खाएंगे?’

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *