महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 के परिणामों ने साफ कर दिया है कि Uddhav Thackeray से बाल ठाकरे की राजनीतिक विरासत पूरी तरह छिन चुकी है। जनता ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना को असली शिवसेना मानकर उन पर भरोसा जताया, जबकि Uddhav Thackeray की शिवसेना (यूबीटी) को पूरी तरह नकार दिया। बाल ठाकरे के नाम पर बनी पार्टी के बिखरने और कमजोर होने की जिम्मेदारी Uddhav Thackeray की गलत रणनीतियों और विचारधारा से भटकाव पर है।
बाल ठाकरे की विरासत क्यों छीनी गई?
1. हिंदुत्व की विचारधारा से समझौता
बाल ठाकरे अपने स्पष्ट और कट्टर हिंदुत्व के लिए पहचाने जाते थे। उन्होंने 1990 के दशक में हिंदूवादी राजनीति को मजबूती दी और शिवसेना को महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा स्थान दिलाया। लेकिन Uddhav Thackeray ने अपने पिता की इस विचारधारा से समझौता किया।
कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन ने उनकी हिंदुत्व की छवि को कमजोर कर दिया।
राहुल गांधी द्वारा सावरकर के अपमान पर Uddhav Thackeray की चुप्पी ने भी उनके समर्थकों को नाराज किया। वहीं, एकनाथ शिंदे ने बाल ठाकरे के हिंदुत्व के एजेंडे को अपनाया और अपने समर्थकों का विश्वास बनाए रखा।
2. कांग्रेस के पिछलग्गू बनने की छवि
बाल ठाकरे ने शिवसेना का गठन ही कांग्रेस विरोध के लिए किया था। लेकिन सत्ता के लिए Uddhav Thackeray ने कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाया। इस गठबंधन ने शिवसेना की मूल विचारधारा को कमजोर कर दिया। शिवसेना का कांग्रेस के साथ गठबंधन उनके समर्थकों को पसंद नहीं आया। इसके उलट, शिंदे गुट ने भाजपा के साथ गठबंधन कर शिवसेना के पारंपरिक हिंदुत्ववादी वोटरों को अपनी तरफ खींच लिया।
3. सावरकर के अपमान पर चुप्पी
बाल ठाकरे सावरकर के आदर्शों को मानते थे और उनकी छवि को हमेशा सम्मान दिया। लेकिन Uddhav Thackeray ने राहुल गांधी द्वारा बार-बार सावरकर के अपमान पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इससे Uddhav Thackeray के प्रति जनता का विश्वास कमजोर हुआ। वहीं, भाजपा और शिंदे ने सावरकर के मुद्दे को मजबूती से उठाकर हिंदुत्ववादी मतदाताओं का समर्थन हासिल किया।
4. पालघर लिंचिंग मामले में ढुलमुल रवैया
पालघर में साधुओं की लिंचिंग के बाद Uddhav Thackeray की सरकार से सख्त कार्रवाई की उम्मीद थी। लेकिन उन्होंने इस घटना को गंभीरता से नहीं लिया। इसके विपरीत, एकनाथ शिंदे ने सत्ता में आने के बाद इस मामले को सीबीआई जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाया। यह कदम शिंदे की जनता के प्रति जवाबदेही को दर्शाता है।
शिंदे की सफलता का कारण
एकनाथ शिंदे ने बाल ठाकरे की हिंदुत्ववादी विचारधारा को अपनाते हुए इसे और मजबूत किया। उन्होंने शिवसेना के पारंपरिक वोट बैंक को भाजपा के साथ गठबंधन कर सुरक्षित रखा। शिंदे ने उन मुद्दों को उठाया, जिनसे हिंदुत्ववादी समर्थकों को जोड़ा जा सके, और जनता के बीच अपनी सुलभ छवि बनाई।
Uddhav Thackeray की गलतियों और विचारधारा से भटकाव ने उन्हें बाल ठाकरे की विरासत से दूर कर दिया। जनता ने शिंदे को असली शिवसेना का नेता मानते हुए उनका समर्थन किया। यह चुनाव परिणाम इस बात का प्रमाण है कि केवल एक बड़े नेता का बेटा होना ही राजनीतिक सफलता की गारंटी नहीं है; जनता से जुड़ाव और विचारधारा की स्पष्टता भी महत्वपूर्ण है।
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