बेंगलुरु के 34 वर्षीय इंजीनियर Atul Subhash की आत्महत्या का मामला पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है। इस घटना ने सोशल मीडिया पर Justice For Atul Subhash अभियान को जन्म दिया, जहां लोग उनके लिए न्याय की मांग कर रहे हैं। Atul Subhash ने अपनी आत्महत्या से पहले 90 मिनट का वीडियो और 24 पन्नों का सुसाइड नोट छोड़ा, जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी और उसके परिवार पर उत्पीड़न का आरोप लगाया।
पत्नी और परिवार पर उत्पीड़न का आरोप
Atul Subhash ने अपने सुसाइड नोट में अपनी पत्नी, निकिता सिंघानिया, जो एक्सेंचर कंपनी में काम करती हैं, और उनके परिवार पर मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगाया। उनके भाई विकास कुमार ने बेंगलुरु पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसके आधार पर उनकी पत्नी, सास, साले और चाचा के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।
सोशल मीडिया पर एक्सेंचर के खिलाफ नाराजगी
इस घटना के बाद लोग एक्सेंचर पर दबाव बना रहे हैं कि वे निकिता को नौकरी से निकाल दें। कई सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने सीधे कंपनी को टैग करते हुए लिखा कि ऐसे “हत्यारों” को नौकरी पर रखना सही नहीं है। एक यूजर ने लिखा, “एक्सेंचर, 24 घंटे के अंदर इस कर्मचारी को हटा दो।” कंपनी ने प्रतिक्रिया स्वरूप अपने सोशल मीडिया अकाउंट को प्राइवेट कर दिया है।
इस घटना ने पुरुष अधिकारों को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। पुरुष अधिकारों की वकालत करने वाली दीपिका नारायण भारद्वाज ने सोशल मीडिया पर अपनी आपबीती साझा करने वाले कई पुरुषों के संदेश साझा किए। उन्होंने बताया कि किस तरह झूठे मामलों और दहेज कानूनों के दुरुपयोग ने कई पुरुषों की जिंदगी तबाह कर दी है।
Atul Subhash जैसे कई और पीड़ितों की कहानियां
सोशल मीडिया पर कई पुरुषों ने अपनी परेशानियों को साझा किया। एक व्यक्ति ने लिखा, “मेरी पत्नी ने मेरे खिलाफ झूठे मामले दर्ज करवाए और अब मेरे मातापिता के घर पर कब्जे की मांग कर रही है।” वहीं, एक अन्य व्यक्ति ने बताया कि उनकी पत्नी ने उनसे 2 करोड़ रुपये की गुजारा भत्ता राशि मांगी है।
कई लोग यह मांग कर रहे हैं कि कानून में बदलाव किया जाए ताकि झूठे मामलों से पीड़ित पुरुषों को न्याय मिल सके। पत्रकार नूपुर शर्मा ने कहा, “Atul Subhash जैसे पुरुषों की मौत का कारण केवल उनका उत्पीड़न नहीं, बल्कि वह न्याय व्यवस्था है, जिसने उनकी बात नहीं सुनी।”
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