Siyaram Baba

Siyaram Baba : मोक्षदा एकादशी (11 दिसंबर 2024) के दिन, हनुमान भक्त और प्रसिद्ध संत सियाराम बाबा ने संसार त्याग दिया। उनका अंतिम संस्कार मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में नर्मदा नदी के किनारे उनके आश्रम के पास किया गया। मुख्यमंत्री मोहन यादव और लाखों श्रद्धालुओं ने बाबा को अंतिम विदाई दी। मुख्यमंत्री ने इसे समाज और संत समुदाय के लिए अपूरणीय क्षति बताया और बाबा की समाधि को तीर्थ स्थल बनाने की घोषणा की।

Siyaram Baba : 10 रुपये का नियम और सेवा का मार्ग

सियाराम बाबा केवल 10 रुपये का दान स्वीकार करते थे। इन पैसों से उन्होंने नर्मदा घाटों का जीर्णोद्धार, मंदिरों का विकास और धर्मस्थलों के निर्माण में योगदान दिया। अयोध्या के राम मंदिर निर्माण के लिए भी उन्होंने 2.50 लाख रुपये दान किए। बाबा की सादगी भरी जीवनशैली और सेवा भावना उन्हें अन्य संतों से अलग बनाती थी। उन्होंने नागलवाड़ी भीलट मंदिर के लिए 2.57 करोड़ और एक चांदी का झूला भी दान किया।

Siyaram Baba : कठोर तपस्या और आध्यात्मिक साधना

बाबा ने अपने जीवन में 12 वर्षों तक एक पैर पर खड़े होकर मौन साधना की। इस दौरान उन्होंने केवल नीम और बिल्व पत्रों का सेवन किया। जब उनका मौन टूटा, तो उन्होंने “सियाराम” शब्द का उच्चारण किया, जिसके बाद वे सियाराम बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो गए। उनकी साधना और रामचरितमानस का पाठ उन्हें आध्यात्मिक गहराई का प्रतीक बनाता है।

Siyaram Baba : बचपन और वैराग्य का सफर

सियाराम बाबा का जन्म गुजरात के काठियावाड़ में हुआ था। वे बचपन में अपने माता-पिता के साथ मुंबई आए, जहां उन्होंने मैट्रिक तक की पढ़ाई की। 17 वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया और पांच साल तक भारत भ्रमण किया। 25 वर्ष की आयु में वे खरगोन जिले के तेली भट्याण गांव पहुंचे और वहीं अपना आश्रम स्थापित किया। बाबा ने एकादशी के दिन संसार छोड़कर मोक्ष प्राप्त किया।

सियाराम बाबा का जीवन सादगी, तपस्या और सेवा का अद्वितीय उदाहरण है। उनका जीवन समाज के लिए प्रेरणादायक है।

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