भारतीय संस्कृति में Karva Chauth का त्यौहार विवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं और रात में चंद्रमा को देखकर और अपने पतियों के हाथों जल ग्रहण करके व्रत खोलती हैं।
Karva Chauth की पूजा में एक महत्वपूर्ण वस्तु होती है मिट्टी का घड़ा, जो इस व्रत की परंपरा और आस्था का प्रतीक माना जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि Karva Chauth की पूजा में मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल क्यों किया जाता है और यह परंपरा कैसे शुरू हुई? मिट्टी का बर्तन, जिसे आमतौर पर “करवा” कहा जाता है, इस पूजा का एक अभिन्न अंग है।
Karva Chauth में करवा का उपयोग पानी, चावल, कुमकुम, हल्दी और अन्य पूजा सामग्री रखने के लिए किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि करवा मिट्टी से बनाया जाता है क्योंकि यह प्रकृति के करीब है और पवित्रता का प्रतीक है। मिट्टी से बना करवा पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व माना जाता है, जो जीवन की जीवंतता और उर्वरता का प्रतीक है।
यह प्रतीकात्मक रूप से इस बात का प्रतीक है कि पति-पत्नी का जीवन प्राकृतिक संतुलन और जीवंतता से भरपूर है। Karva Chauth की पूजा में करवा का स्थान सर्वोपरि होता है। महिलाएं करवे में जल भरकर देवी के सामने रखती हैं. करवा के इस जल को पवित्र माना जाता है और इसे चढ़ाकर परिवार की सुख-समृद्धि और खुशहाली की प्रार्थना की जाती है।
पूजा के अंत में इसी जल से चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। करवे में भरा जल जीवनदायिनी शक्ति का प्रतीक है और इसके माध्यम से महिलाएं अपने परिवार की सुरक्षा और समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं।
Karva Chauth में मिट्टी के करवे का प्रयोग कब और कैसे शुरू हुआ, इसका कोई सटीक ऐतिहासिक प्रमाण तो नहीं है, लेकिन इसके पीछे कई लोककथाएं और मान्यताएं हैं। एक प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में महिलाएं करवे में जल रखकर अपने परिवार को अर्पित करती थीं।
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