Punjab : दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के बढ़ते स्तर ने इसे गैस चैंबर जैसी स्थिति में बदल दिया है। वायु गुणवत्ता बेहद खराब हो चुकी है और इसमें पराली जलाने को एक प्रमुख कारण माना जा रहा है। हालांकि, सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई है, लेकिन वायु प्रदूषण पर इसका असर देखने को नहीं मिला। विशेषज्ञ आशंका जता रहे हैं कि किसान पराली जलाने के समय और तरीकों में बदलाव कर सैटेलाइट के जरिए निगरानी से बचने की कोशिश कर रहे हैं।
Punjab : ‘पोखरण प्लान’ और पराली जलाने की तुलना
1998 में भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था। अमेरिकी सैटेलाइट्स की निगरानी से बचने के लिए वैज्ञानिकों ने कई गुप्त रणनीतियाँ अपनाई थीं। उपकरणों को बालू से ढककर, गतिविधियाँ रात में की गईं। आज, नासा के वैज्ञानिकों का कहना है कि किसान उसी तरह की योजनाओं का उपयोग कर सैटेलाइट से बचकर पराली जला रहे हैं।
नासा वैज्ञानिक हीरेन जेठवा ने अपने अध्ययन में पाया कि किसान सैटेलाइट्स के मूविंग टाइम को समझकर दोपहर के बाद पराली जलाते हैं। GEO-KOMPSAT-2A सैटेलाइट के डेटा में देखा गया कि दोपहर के बाद आग लगने की घटनाएँ अधिक होती हैं। नासा और NOAA के सैटेलाइट्स भारत और पाकिस्तान के ऊपर से दोपहर 1:30 से 2:00 बजे के बीच गुजरते हैं।
Punjab : आंकड़ों में विरोधाभास
सरकारी डेटा के अनुसार, इस साल पंजाब में पराली जलाने की घटनाएँ 8,404 दर्ज हुईं, जबकि पिछले साल यह संख्या 33,082 थी। हरियाणा में भी घटनाओं में कमी आई है। इसके बावजूद, प्रदूषण का स्तर स्थिर बना हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि पराली जलाने की घटनाओं को मापने के लिए अधिक सटीक तकनीकों की आवश्यकता है।
Punjab : किसानों की मजबूरी और प्रशासन की दलीलें
कई किसान नेताओं का कहना है कि सरकार ने पराली प्रबंधन के लिए कोई ठोस समाधान नहीं दिया है। उन्हें मजबूरी में पराली जलानी पड़ती है। किसानों का आरोप है कि प्रशासन खुद शाम 4 बजे के बाद पराली जलाने की अनुमति देता है। दूसरी ओर, प्रशासन का कहना है कि किसानों को जागरूक किया जा रहा है और पराली जलाने पर सख्त कार्रवाई की जा रही है।
Punjab : क्या है समाधान?
पराली जलाने की समस्या का स्थायी समाधान पराली प्रबंधन और किसानों को आर्थिक सहायता में छिपा है। सरकार को किसानों को पराली न जलाने के लिए प्रोत्साहन राशि देनी चाहिए। इसके साथ ही, सटीक डेटा संग्रह और निगरानी तंत्र को मजबूत करना जरूरी है। पराली प्रबंधन के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग और किसानों को वैकल्पिक साधन उपलब्ध कराना समय की माँग है।
यह समस्या केवल कुछ राज्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका असर पूरे देश पर पड़ रहा है। इसे हल करने के लिए सभी स्तरों पर समन्वय और ठोस नीतियाँ बनानी होंगी।
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